Aditya Hridaya Stotra | आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ | Aditya Hridayam

आदित्य हृदय स्तोत्र (Aditya Hridaya Stotra ) भगवान सूर्य को समर्पित एक पवित्र प्रार्थना है। यह रामायण के एक महत्वपूर्ण भाग में आती है और इसे ऋषि अगस्त्य द्वारा रचित माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को शक्ति, साहस, और ज्ञान प्राप्त होता है, और यह विशेष रूप से कठिनाइयों को दूर करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र में कूल 31 श्लोकों का संग्रह है, जिनमें से प्रत्येक भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें स्वास्थ्य, समृद्धि, और कार्यों में सफलता शामिल है।

यहाँ आदित्य हृदय स्तोत्र का सम्पूर्ण पाठ दिया जा रहा है जिसे आप पढ़ सकते है। यहाँ आदित्य हृदय स्तोत्र का सम्पूर्ण पाठ दिया जा रहा है जिसे आप पढ़ सकते है। लेकिन उस से पहले यह जानते है की आदित्य हृदय स्तोत्र क्या है और कहा से आया। 

क्या है आदित्य हृदय स्तोत्र?

आदित्य हृदय स्तोत्र न केवल भगवान सूर्य की स्तुति है बल्कि यह हमारे जीवन को ऊर्जा और प्रकाश से भरने वाली एक शक्तिशाली साधना है। इसके माध्यम से हम अपने जीवन में अनेक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह स्तोत्र श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध के दौरान प्रकट हुआ था, जब श्रीराम को युद्ध में साहस और शक्ति की आवश्यकता थी। तब ऋषि अगस्त्य ने उन्हें इस दिव्य स्तोत्र का उपदेश दिया, जिससे उन्हें अपार ऊर्जा और विजय प्राप्त हुई।

Aditya Hridaya Stotra Lyrics | आदित्यहृदय स्तोत्र |  Aditya Hridayam


ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

पाठ करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें स्वास्थ्य, समृद्धि, और कार्यों में सफलता शामिल है।


Aditya Hridaya Stotra in Hindi


आदित्यहृदय स्तोत्र का महत्व

  • आध्यात्मिक लाभ: भगवान सूर्य का आह्वान इस स्तोत्र के माध्यम से जीवन से अंधकार और अज्ञान को दूर करता है, जिससे स्पष्टता और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।
  • स्वास्थ्य लाभ: सूर्य को जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, और यह स्तोत्र अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए पढ़ा जाता है।
  • मानसिक शक्ति: यह प्रार्थना साहस और मानसिक दृढ़ता प्रदान करती है, जिससे भक्त चुनौतियों का सामना सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ कर सकते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे

  1. विपत्ति पर विजय: बाधाओं को दूर करने और सफलता प्राप्त करने में सहायक।
  2. आंतरिक शांति: मानसिक शांति को बढ़ावा देता है और तनाव को कम करता है।
  3. शारीरिक स्वास्थ्य: जीवन शक्ति को बढ़ाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को सुधारता है।
  4. भावनात्मक स्थिरता: भावनात्मक शक्ति और सहनशीलता प्रदान करता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने की विधि

  • समय: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके करें।
  • तैयारी: शांत स्थान पर बैठें, सूर्य का ध्यान करें और भक्तिपूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
  • आवृत्ति [Frequency]: अधिकतम लाभ के लिए नियमित रूप से पाठ करने की सलाह दी जाती है।

आदित्य हृदय स्तोत्र हमारे जीवन में ज्ञान, शक्ति, और समृद्धि लाने का एक प्रभावी साधन है। इसके नियमित जप से हम भगवान सूर्य की अनंत कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जो हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता और संतोष प्रदान करती है।

यह प्रार्थना हमें यह याद दिलाती है कि भगवान सूर्य हमारे जीवन के मूल स्रोत हैं और उनकी कृपा से ही हमारा जीवन उज्ज्वल और समृद्ध हो सकता है।